वीर्य के बारें में जानकारी -
आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में सात धातु होते हैं- जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है। वीर्य ही मानव शरीर का सारतत्व है।
40 बूंद रक्त से 1 बूंद वीर्य होता है।
एक बार के वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम वीर्य का नाश होता है । जिस प्रकार पूरे गन्ने में शर्करा व्याप्त रहता है उसी प्रकार वीर्य पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से व्याप्त रहता है।
सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते है ।।
महान ऋषि याज्ञवल्क्य ने ब्रह्मचर्य के नियमों में बताया है –
कर्मणा मनसा वाचा सर्वावस्थासु सर्वदा |सर्वत्र मैथुनत्यागो ब्रह्मचर्यं प्रचक्षते ||
भगवान् गीता में कहते हैं
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति
विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः |
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति
तत्ते पदं सङ्ग्रहेण प्रवक्ष्ये ||
जो वेदों के ज्ञाता हैं, जो ओंकार का उच्चारण करते हैं और जो संन्यास आश्रम के बड़े-बड़े मुनि हैं, वे ब्रह्म में प्रवेश करते हैं | ऐसी सिद्धि की इच्छा करने वाले ब्रह्मचर्यव्रत का अभ्यास करते हैं | अब मैं तुम्हें वह विधि बताऊँगा, जिससे कोई भी व्यक्ति मुक्ति-लाभ कर सकता है |
वीर्य को पानी की तरह रोज बहा देने से नुकसान -
शरीर के अन्दर विद्यमान ‘वीर्य’ ही जीवन शक्ति का भण्डार है।
शारीरिक एवं मानसिक दुराचर तथा प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक मैथुन से इसका क्षरण होता है। कामुक चिंतन से भी इसका नुकसान होता है।
मैथून के द्वारा पूरे शरीर में मंथन चलता है और शरीर का सार तत्व कुछ ही समय में बाहर आ जाता है।
रस निकाल लेने पर जैसे गन्ना छूंछ हो जाता है कुछ वैसे ही स्थिति वीर्यहीन मनुष्य की हो जाती है। ऐसे मनुष्य की तुलना मणिहीन नाग से भी की जा सकती है। खोखला होता जाता है इन्सान ।
स्वामी शिवानंद जी ने मैथुन के प्रकार बताए हैं जिनसे बचना ही ब्रह्मचर्य है -
1. स्त्रियों को कामुक भाव से देखना।
२. सविलास की क्रीड़ा करना।
3. स्त्री के रुप यौवन की प्रशंसा करना।
4. तुष्टिकरण की कामना से स्त्री के निकट जाना।
5. क्रिया निवृत्ति अर्थात् वास्तविक रति क्रिया।
इसके अतिरिक्त विकृत यौनाचार से भी वीर्य की भारी क्षति हो जाती है। हस्तक्रिया आदि इसमें शामिल है।
शरीर में व्याप्त वीर्य कामुक विचारों के चलते अपना स्थान छोडऩे लगते हैं और अन्तत: स्वप्रदोष आदि के द्वारा बाहर आ जाता है।
ब्रह्मचर्य का तात्पर्य वीर्य रक्षा से है। यह ध्यान रखने की बात है कि ब्रह्मचर्य शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से होना जरूरी है। अविवाहित रहना मात्र ब्रह्मचर्य नहीं कहलाता।
धर्म कर्तव्य के रूप में सन्तानोत्पत्ति और बात है और कामुकता के फेर में पडक़र अंधाधुंध वीर्य नाश करना बिलकुल भिन्न है।
मैथुन क्रिया से होने वाले नुकसान निम्रानुसार है-
* शरीर की जीवनी शक्ति घट जाती है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
* आँखो की रोशनी कम हो जाती है।
* शारीरिक एवं मानसिक बल कमजोर हो जाता है।
* जिस तरह जीने के लिये ऑक्सीजन चाहिए वैसे ही ‘निरोग’ रहने के लिये ‘वीर्य’।
* ऑक्सीजन प्राणवायु है तो वीर्य जीवनी शक्ति है।
* अधिक मैथुन से स्मरण शक्ति कमजोर हो जाता है।
* चिंतन विकृत हो जाता है।
वीर्यक्षय से विशेषकर तरूणावस्था में अनेक रोग उत्पन्न होते हैं -
चेहरे पर मुँहासे , नेत्रों के चतुर्दिक नीली रेखाएँ, दाढ़ी का अभाव, धँसे हुए नेत्र, रक्तक्षीणता से पीला चेहरा, स्मृतिनाश, दृष्टि की क्षीणता, मूत्र के साथ वीर्यस्खलन, दुर्बलता, आलस्य, उदासी, हृदय-कम्प, शिरोवेदना, संधि-पीड़ा, दुर्बल वृक्क, निद्रा में मूत्र निकल जाना, मानसिक अस्थिरता, विचारशक्ति का अभाव, दुःस्वप्न, स्वप्नदोष व मानसिक अशांति।
अगर किसी को ये समस्याएँ हैं तो उपाय भी यहाँ है -
साधक को चाहिए की पूर्ण तन्मयता के साथ हरे कृष्ण महामंत्र का जप करे मन को भगवान की सेवा में लगाये ।इस कलियुग में बिना हरे कृष्ण महामंत्र के परमेश्वर का साक्षात्कार असंभव है ।
कुछ योगनुसार नियम इस प्रकार हैं :-
लेटकर श्वास बाहर निकालें और अश्विनी मुद्रा अर्थात् 30-35 बार गुदाद्वार का आकुंचन-प्रसरण श्वास रोककर करें।
ऐसे एक बार में 30-35 बार संकोचन विस्तरण करें। तीन चार बार श्वास रोकने में 100 से 120 बार हो जायेगा।
यह ब्रह्मचर्य की रक्षा में खूब मदद करेगी। इससे व्यक्तित्व का विकास होगा ही, व ये रोग भी दूर होंगे समय के साथ ।।
वीर्य रक्षण से लाभ -
शरीर में वीर्य संरक्षित होने पर आँखों में तेज, वाणी में प्रभाव, कार्य में उत्साह एवं प्राण ऊर्जा में अभिवृद्धि होती है।
ऐसे व्यक्ति को जल्दी से कोई रोग नहीं होता है उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है ।
पहले के जमाने में हमारे गुरुकुल शिक्षा पद्धति में ब्रह्मचर्य अनिवार्य हुआ करता था। और उस वक्त में यहाँ वीर योद्धा, ज्ञानी, तपस्वी व ऋषि स्तर के लोग हुए ।
भगवान बुद्ध ने कहा है - ‘‘भोग और रोग साथी है और ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है।’’
स्वामी रामतीर्थ ने कहा है - ‘‘जैसे दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है, वैसे ही ब्रह्मचारी के अन्दर का वीर्य सुषुम्रा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान-दीप्ति में परिणित हो जाता है।
शंकर जी ने कहा है-
'इस ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही मेरी ऐसी महान महिमा हुई है।'
कुछ उपाय -
ब्रह्मचर्य जीवन जीने के लिये सबसे पहले ‘मन’ का साधने की आवश्यकता है।
भोजन पवित्र एवं सादा होना चाहिए(केवल कृष्ण प्रसाद), सात्विक होना चाहिए।
1. प्रात: ब्रह्ममुहूर्त (३:३० - ४:००)में उठ जाएँ।
2. तेज मिर्च मसालों से बचें। शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन (केवल कृष्ण प्रसाद) करें।
3. सभी नशीले पदार्थों से बचें।
4. हरे कृष्ण महामन्त्र का जप व लेखन करें।
5. नित्य ध्यान (जप) का अभ्यास करें।
6. मन को खाली न छोड़ें किसी भक्तिपूर्ण रचनात्मक कार्य व लक्ष्य से जोड़ रखें।
7. नित्य योगाभ्यास करें। निम्न आसन व प्राणायाम अनिवार्यत: करें-
आसन-पश्चिमोत्तासन, सर्वांगासन, भद्रासन प्राणायाम- भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम विलोम।
जो हम खाना खाते हैं उससे वीर्य बनने की काफी लम्बी प्रक्रिया है।खाना खाने के बाद रस बनता है जो कि नाडियों में चलता है।फिर बाद में खून बनता है।इस प्रकार से यह क्रम चलता है और अंत में वीर्य बनता है।
वीर्य में अनेक गुण होतें हैं।
क्या आपने कभी यह सोचा है कि शेर इतना ताकतवर क्यों होता है?वह अपने जीवन में केवल एक बार बच्चॉ के लिये मैथुन करता है।जिस वजह से उसमें वीर्य बचा रहता है और वह इतना ताकतवर होता है।
जो वीर्य इक्कठा होता है वह जरूरी नहीं है कि धारण क्षमता कम होने से वीर्य बाहर आ जायेगा।वीर्य जहाँ इक्कठा होता है वहाँ से वह नब्बे दिनों बाद पूरे शरीर में चला जाता है।
फिर उससे जो सुंदरता,शक्ति,रोग प्रतिरोधक क्षमता आदि बढती हैं उसका कोई पारावार नहीं होता है।
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पत्नी का त्याग नहीं करना है (गृहस्थों के लिए)
ब्रह्मचर्य में स्त्री और पुरुष का कोई लेना देना ही नहीं है।
प्राचीन काल में ऋषि मुनि गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे, ऋषि पत्नियां भी बहुत जागृत और ग्यानी होती थी। आत्मसाक्षात्कार का जितना अधिकार पुरुषो को था उतना ही स्त्रियों को भी था।
ब्रह्मचर्य को पूर्ण गरिमा प्राचीन काल में ही मिली थी। मैंने एक कथा सुनी थी, एक ऋषि ने अपने पुत्र को दुसरे ऋषि के पास सन्देश लेकर भेजा था, पुत्र ने पिता से कहा की राह में एक नदी पड़ती है, कैसे पार करूँगा।
ऋषि ने कहा जाकर नदी से कहना,अगर मेरे पिता ने एक पल भी ब्रह्मचर्य का व्रत ना त्यागा हो, स्वप्न में भी नहीं, तो हे नदी तू मुझे रास्ता दे दे।
कथा कहती है की नदी ने रास्ता दे दिया। कैसा विरोधाभास है, एक पुत्र का पिता और ब्रह्मचारी , कैसे ?
जाहिर है कि संभोग एक बार सन्तानोपत्ति के लिए किया गया था , आनंद के लिए नहीं ।
बुद्ध और महावीर के बाद हज़ारों युवक अपनी पत्नियों को घर को छोड़ कर भिक्षु बन गए , तब ब्रह्मचर्य का अर्थ सिर्फ स्त्री निषेध बन गया। परन्तु उनका पूर्णतः उद्देश्य भिन्न था ।
दोनों का मिलन कामतृप्ति एवं प्रजनन जैसे पशु प्रयोजन के लिए नहीं होता, वरन घर बसाने से लेकर व्यक्तियों के विकास और कृष्णभावनाभावित सामाज की प्रगति तक समस्त सत्प्रवित्तियों का ढांचा दोनों के सहयोग से ही सम्भव होता है।
शादीशुदा व्यक्ति पूर्ण ब्रह्मचर्य ना रख सकें तो भी संयमित जीवन अवश्य व्यतीत करना चाहिए ।
जब साधक या साधिका अपनी चेतना भगवान् में स्थित करता है तो काम ऊर्जा वास्तविक ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है और फिर साधक या साधिका एक अनंत आनंद में होता है । ऐसा करने के उपरांत वाह्य आकर्षण समाप्त हो जाता है और एक अध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होने लगती है ।
अगर कोई कहता है कि यौन इच्छाओं को दबाने से नपुंसकता आ जाएगी या दबाने से अच्छा है भोग लो , परन्तु यदि आप उपर लिखी दिनचर्या अपनाएंगे तो यौन इच्छाएँ पैदा ही नहीं होगी ,
मन निर्मल तो तन निर्मल ।।
अगर कोई कहे कि संभोग 8-10 दिन इतना ज्यादा करो कि घृणा हो जाए , तो ऐसा नहीं है । इन्द्रियाँ अग्नि के सामान हैं और विषय घी के सामान है आप अग्नि में जितना घी डालेंगे अग्नि उतनी ज्यादा प्रज्वलित होगी ।
इसलिए ये सोचना बिल्कुल गलत होगा कि 8-10 दिन जमकर करो तो घृणा हो जाएगी सदा के लिए । ।
साधना पर भी प्रभाव पडेगा , जो व्यक्ति कामुक है , उसके विचार भी वैसे चलेंगे , ज्यादा वीर्य नष्ट करने से शरीर में शक्ति का संचार कम होगा , वह 1 घण्टे तक ज्ञान मुद्रा में ही नहीं बैठ पाएगा ।
योग और भोग में फर्क क्या है,आइये जानते हैं।
योग जो पुत्र उत्पत्ति के उद्देश्य से किया गया संभोग जिसे संयोग की संज्ञा दी गई है ,यह योग में आता है। और जो काम इच्छा की पूर्ति के लिए व अपने उच्छृखल मन को बिभिन्न शारीरीक कृड़ा से आनंदित व मनोनुकुल तृप्ति के उद्देश्य से किया गया संभोग यह भोग की संज्ञा में आता है । और यह मैथुन क्रिया 10 प्रकार की होती है 1*योनि मैथुन 2*गुदामैथुन 3*मुख मैथुन 4* स्पर्श मैथुन 5*हस्त मैथुन 6* दृष्टि मैथुन 7*कल्पना मैथुन8* स्वप्न मैथुन 9*वाक्य मैथुन (कह कर उत्तेजित हो बीर्य का नाश करना) 10*श्रोता मैथुन(सुन कर उत्तेजित हो बीर्य का नाश करना।
अर्थात जो इन 10 प्रकार के मैथुन क्रियाओं से वंचित होकर भगवान् कृष्ण की भक्ति करता है वह पूर्ण रुपेन ब्रह्मचर्य है अन्यथा ब्रह्मचर्य का दावा करना खोखली आडंबर है पर अल्पकालिक ब्रह्मचर्य का व्रत हम साधक में से कोई भी व्यक्ति निभा सकता है या निभाने की भरपूर कोशिश कर सकता है जैसी प्रबल चेष्टा होगी वैसी ही प्रबल उसका परिणाम होगा।
हरे कृष्ण
Very useful blog.....👌👌
जवाब देंहटाएंपालन करूँगा।
जवाब देंहटाएंAll the best...may krishna help you to follow...
हटाएंVery interesting, i was looking for this for very long time, very good information please keep it up..
जवाब देंहटाएंThank you. Please share it so that others can get benefited
हटाएंAb maine apni kaamwasna ko challenge kiya h...wo aaegi,mujhe uttejit karegi..pr har baar main use dur bhagaunga..fir chahe main kitna bhi bechain rhun..6 saal ho gye..pr ab aur nhin..ab is hsthmaithun ki lat ko chodkar rhunga
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर .... भगवान कृष्ण आपकी मदद करें
हटाएंThnx.for your valuable suggestions😊🙏
जवाब देंहटाएंविवाहित पुरुष ko कितने interval pe kambhog lena विहित है? Pl clear.
जवाब देंहटाएंमात्र कृष्णभावनाभावित संतान उत्पत्ति के लिए जो हमारे समाज के उत्थान में सहायता करे। इसके अतिरिक्त इंद्रियतृप्ति के लिए कभी नही करना चाहिए।
हटाएंFor more details plz meet me or call me at 7053045453
हटाएंvery nice information mujhe apne aap me canfidans aya ab meri kitni hi ikshaa ho me nahi karunga
जवाब देंहटाएंpar tum controal nahi kar paoge .
हटाएंDhanyavad. Guru ji.
जवाब देंहटाएंThank you Guru ji...apne mere aakhne khol de ...apki kripa se mai eska paln karunga...aor sri Krishna bhakti b karunga...
जवाब देंहटाएं...yah sbko krna chahiy...
Thank you for this great information guruji. Aj se me BHI Pura taan aur mann ke Saath brahmacharya Ka akhand plan karunga.
जवाब देंहटाएंमानव तन के सारतत्व की महिमा को अति सरलता से समझाने के लिए हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंThank-you so much
जवाब देंहटाएंवीर्य रक्षा जीवन रक्षा है .. कोशिश करें कि वीर्य का नाश न करें .. अन्था आपका नाश निश्चित है .. जय श्री कृष्ण
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जवाब देंहटाएंAryan Boy(गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें)
Veri nice susheel kumar kushwaha
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