दिल की नादानी

 

सबकुछ तो है समक्ष मेरे,
दिल में फिर वीरानी क्यों है
सच झूठ का ज्ञान इसे है,
करता दिल नादानी क्यों है

पतझड़ के इस मौसम में झट,
बसंत की आस दिलाता है
बिखर रहे भावनावों से फिर,
खुद को ठेस लगाता है
अंजाम विदित होने पर भी,
करता ये मनमानी क्यों है
सच झूठ का ज्ञान इसे है,
करता दिल नादानी क्यों है

 ठहरे पानी में इसने,
पैदा की एक हलचल सी
शांत सितारे बैठे थे,
मचा दी इसमें झलमल सी
चंचल से इस मन ने इसने,
उठाई लहरें अनजानी क्यों है
सच झूठ का ज्ञान इसे है,
करता दिल नादानी क्यों है


- श्यामानंद दास

टिप्पणियाँ

  1. Ati uttam 👌👏👏👏 Hari bol🙌

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  2. अति सुन्दर प्रभु जी 🙏

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