दिल की नादानी
सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास
Mast
जवाब देंहटाएंThank you sir
हटाएंअति सुंदर
जवाब देंहटाएंThank you
हटाएंAwesome poem...
जवाब देंहटाएंThank you very much sir
हटाएंJaya....
जवाब देंहटाएंThank you
हटाएंअतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंइस कविता से मुझेै समझ है आया"हमेसा रखो कृष्ण में आस"
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर कविता...जय जय
thank you pr
हटाएंVery beautiful..
जवाब देंहटाएंThank you very much pr ji
हटाएंVery nice 👌
जवाब देंहटाएं