दिल की नादानी

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  सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है   ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास

क्यूँ है मन मेरा उदास.....??




भीतर एक प्रश्न खड़ा है
प्रश्न मेरा बहुत है खास
समझ न आये करूँ मै क्या
क्यूँ है मन मेरा उदास

ठहरी सी है वायु ये जैसे
थका-थका सा नीर है
सहमी-सहमी रात ये मानो
चंदा भी गंभीर है
गुपचुप सी वसुधा ये लगती
गुमसुम सा लगता आकाश
समझ न आये करूँ मै क्या
क्यूँ है मन मेरा उदास

नहीं कोई उल्लास तरुवर में
बसंत मानो है खामोश
पंक्षियों में ऐसा सन्नाटा
मचा है यूं कोई आक्रोश
नीरस ये लगती है होली
नहीं लग रहा फागुन मास
समझ न आये करूँ मै क्या
क्यूँ है मन मेरा उदास

आज मन में कोई तरंगे नहीं आई
कोई ख़ुशी की लहर भी नहीं छाई
मन में नहीं उठी कोई वेदना
न ही तन में कोई उत्तेजना
महसूस नहीं हो रही कोई पीड़ा
और न ही है कोई प्यास
समझ न आये करूँ मै क्या
क्यूँ है मन मेरा उदास

कदाचित कृष्ण की याद आई नहीं
प्रियतम से नैन लड़ाई नहीं
अधरों के मुस्कराहट देखने को
कदाचित आँखे ललचाई नहीं
विस्मरण कर मेरी उलझन को
गोविन्द करो हृदय में वास
समझ न आये करूँ मै क्या
क्यूँ है मन मेरा उदास

टिप्पणियाँ

  1. इस कविता से मुझेै समझ है आया"हमेसा रखो कृष्ण में आस"

    अतिसुंदर कविता...जय जय

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