दिल की नादानी

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  सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है   ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास

कृष्ण की सुन्दरता





रूप निहारूं क्या गिरिधारी
देख सकल सुन्दर घनश्याम
ये सौंदर्य बिलोकी सखी
रिझत जाएँ करोड़ों काम

स्वर्ण मुकुट सोहत अति सुन्दर
रम्य कपाल तिलक छवि धाम
सुन्दर कुंडल यों श्रवनन पर
सुन्दर कान्ति से मोहित काम
रूप निहारूं क्या गिरिधारी
देखो सभी सुन्दर घनश्याम

सुन्दर हंसी नासिका सुन्दर
सुन्दर वंशी अधर उपाम
सुन्दर वचन चरित अति सुन्दर
सुन्दर वस्त्र मनोहर नाम
रूप निहारूं क्या गिरिधारी
देखो सभी सुन्दर घनश्याम

सुन्दर कर पग हैं अति सुन्दर
सुन्दर नृत्य लगे अभिराम
सुन्दर छल सुन्दर है छल दल
सुन्दर जिनके कृत्य तमाम
रूप निहारूं क्या गिरिधारी
देखो सभी सुन्दर घनश्याम

सुंदर गान मान अति सुन्दर
सुन्दर लीला हे लीलाधाम
श्यामानंद अवाच्य ये शोभा
सिन्धु समक्ष है बूँद समान

रूप निहारूं क्या गिरिधारी

देखो सभी सुन्दर घनश्याम

टिप्पणियाँ

  1. हरि हरि बोल अति सुन्दर मनमोहक

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