दिल की नादानी
सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास
Hari bol, superb
जवाब देंहटाएंthank you pr
हटाएं😘😘
जवाब देंहटाएंThank you very much
हटाएंAti ittam sir
जवाब देंहटाएंthank you very much sir.
हटाएंJai Giridhari
जवाब देंहटाएंThank you very much pr. Please bless me
हटाएंMindblowing
जवाब देंहटाएंthank you pr
हटाएंthank you pr
जवाब देंहटाएंthank you pr
जवाब देंहटाएंJai Jai ..nice composition
जवाब देंहटाएंThank you very much pr. plz bless me
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंThank you pr
हटाएंNice pome ...
जवाब देंहटाएंHare Krishna...
thank you
हटाएंHare Krishna Prabhu ji, . very good composition
जवाब देंहटाएंthank you pr ji
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंहरि हरि बोल अति सुन्दर मनमोहक
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंSpeechless
जवाब देंहटाएंThank you very much pr.....Hari bol
हटाएंNice poetry.
जवाब देंहटाएंThank u
हटाएंSuperb!!
जवाब देंहटाएंThank u
हटाएंHari bol...👍👍🙏🙏🙏🤗
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