दिल की नादानी

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  सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है   ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास

कहाँ हूँ मै खो गया ...



कहाँ हूँ मै खो गया 
कैसे भ्रमित मै हो गया 

पहचान अपनी ढूंढने 
एक दिन आया था यहाँ 
हृदय में ये आस लेकर 
खुद को मनाया था जहाँ 
भूल को उद्देश्य को 
क्या मै करने लग गया 
कहाँ हूँ मै खो गया 

ढूंढता पहचान अपनी 
फिरता हूँ यहाँ वहाँ
न जाने किस ओर जाना 
न जाने मंजिल है कहाँ
कौन हूँ मैं, क्या हूँ मै 
कोई बता जाये जरा 
कहाँ हूँ मै खो गया 

हताश होकर आ बैठा 
इस नील नभ के तले 
जिसके अंक में रहकर 
सारा जग ये पले
निहार ऊपर नभ को 
बोलता में बेहिसाब 
हा ! मेरी वेदनाओं का 
कोई तो दे जवाब 
इस आधुनिक संसार में 
क्या से क्या ये हो रहा 
कहाँ हूँ मै खो गया 

इस भाग दौड़ के जीवन में 
कोई न सुनता गीत मेरा 
अब हुई अनुभूति मुझको 
कृष्ण हैं सच्चे मीत मेरे 
हे कृष्ण आप बताओ 
कैसे ये सब हो रहा 
कहाँ हूँ मै खो गया 


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