दिल की नादानी
सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास
Sunder
जवाब देंहटाएंDhanyawad
हटाएंBeautiful lines sir
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंअद्भुत कविता है प्रभूजी हर किसी के जीवन से जुड़ी हुई।
जवाब देंहटाएंप्रभु का मार्ग दिखाया गुरु ने
लगता मुझे अब आया होश।
यही है जीवन की सच्चाई
जिससे होता पूर्ण संतोष।
Jai ho jai ho....
हटाएंदिल का हाल यही ह हमारे
जवाब देंहटाएंOoohhh..!!!
हटाएंAwesome poetry sir and really meaningful n worth to life !! 👏👏👏
जवाब देंहटाएंthank you very much
हटाएंHeart touching.. Poem
जवाब देंहटाएंthank you
हटाएंOne of ur best sir...awesome
जवाब देंहटाएंthank you very much sir
हटाएंHeart Touching Poem Prabhu Ji
जवाब देंहटाएंThank you very much
हटाएंPrabhuji waise to bahut Sathi hai aapke jaha tak mai Janta hu...Pata nhi yaha par kis sathi ki talash me hai aap...Waise Santosh pradan karne wale to sakshat Prabhu hi sathi ho sakte hai...Sabko dikhte keval dosh, pankti ka bhav Janne ki iksha hai...Self Introspection se bhari ye panktiya prasansaniya hai.❤
जवाब देंहटाएंVery nice Pome Prabhu Ji
जवाब देंहटाएंYahi jiwan ka saty h
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