दिल की नादानी

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  सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है   ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास

संतोष



अंदर दुख की ज्वाला भड़की
मन में यूँ पर्वत सा रोष
बहुत व्यघ्र है मन मेरा
जाने हो कैसे संतोष

कालचक्र बढ़ता ये निशदिन
जैसे मुझे डराता हो
तोड़ मनोबल मेरा मुझको
मानों मुझे हराता हो
दिन तो उथल पुथल में जाता
रजनी में ना रहता होश
बहुत व्यघ्र है मन मेरा
जाने हो कैसे संतोष

कोई राग , राग ना लगता
लगती है केवल इक चाल
सुख भी कोई सुख न लगता
लगता जैसे सुंदर जाल
सारे जग में ढूंढ लिया
मिला है केवल खाली कोष
बहुत व्यघ्र है मन मेरा
जाने हो कैसे संतोष

कौन, कहाँ, कैसे हूं मैं
ये बातें मुझको डसती हैं
किस कारणवश मिला ये जीवन
आँखे सोंच सिसकती हैं
जो भी करता मैं जीवन में
उसका क्यों मुझको अफसोस
बहुत व्यघ्र है मन मेरा
जाने हो कैसे संतोष

काश ! कोई ऐसा भी हो
जिसको हृदय दिखाऊं मैं
रोती आंखों को लेकर
उर की पीड़ा बतलाऊँ मैं
कोई साथी नहीं यहां पर
सबको दिखते केवल दोष
बहुत व्यघ्र है मन मेरा
जाने हो कैसे संतोष

टिप्पणियाँ

  1. अद्भुत कविता है प्रभूजी हर किसी के जीवन से जुड़ी हुई।

    प्रभु का मार्ग दिखाया गुरु ने
    लगता मुझे अब आया होश।
    यही है जीवन की सच्चाई
    जिससे होता पूर्ण संतोष।

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  2. Awesome poetry sir and really meaningful n worth to life !! 👏👏👏

    जवाब देंहटाएं
  3. Prabhuji waise to bahut Sathi hai aapke jaha tak mai Janta hu...Pata nhi yaha par kis sathi ki talash me hai aap...Waise Santosh pradan karne wale to sakshat Prabhu hi sathi ho sakte hai...Sabko dikhte keval dosh, pankti ka bhav Janne ki iksha hai...Self Introspection se bhari ye panktiya prasansaniya hai.❤

    जवाब देंहटाएं

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