दिल की नादानी

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  सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है   ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास

भगवद गीता



धर्म विचरता एक शिविर में अरु इक था अधर्म तले
माधव हैं उस शिविर के रक्षक जिसके अंक में धर्म पले
अत्याचार अहम की बू थी सम्पूर्ण धरा पर फ़ैल रही
लगा प्रत्यक्ष निकलने जो अधर्म के मन की मैल रही
सात चली ग्यारह से लड़ने एक विश्वास कृष्ण का लेकर
पांडव थे रक्षित माधव से संरक्षण धर्मराज का लेकर
 डरा हुआ सा दिन था और रजनी मानों थर्राई थी
प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी

देख स्वजन को विचलित अर्जुन केशव से ऐसे बोले
द्रोंड पितामह अपनों को मारू कैसे मन मेरा डोले
जिनकी शिक्षा पाकर मैंने तलवार धनुष चलाना सीखा
जिनकी गोदी में मैंने धर्म अधर्म परखना सीखा
आज उन्ही के सामने आकर कैसे शस्त्र उठाऊ मै
जिन हाथों से खाना सीखा उनका लहू बहाऊ मैं
पार्थ के मन ने मोह भय और कायरता झलकाई थी 
प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी

अर्जुन की ये देख स्थिति को केशव ने फटकार लगाई
सुन कर अर्जुन के तर्कों को आशा की एक राह दिखाई
आत्मा अजर अमर है तुम इसका हनन असंभव जानो
धर्म की बात पर मनन करो और मै जो कहता वो तुम मानो
छोड़ मोह हे परन्तप धर्म हेतु तुम युद्ध करो
अपना नियत कर्म करो और फल की चिंता नहीं करो
दिया ज्ञान अर्जुन को कृष्ण ने आशा की किरण जगाई थी
प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी

मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का पालक मुझको ही जानो भगवान
मुझसे ही सब उधृत होते मै सब में होता बलवान
मै सबके उर में हू बैठा मुझसे आता ज्ञान विज्ञान
मुझसे ही विस्मृति है आती मुझसे आता ऐश्वर्य महान
मैं समस्त वेदों का ज्ञाता मैं समस्त वेदों का सार
दिग दिगंतर में मैं रहता मेरी लीला अपरम्पार
देख विराट रूप केशव की अर्जुन की नजर चकमाई थी
प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी

देखो अर्जुन शोक न करो धर्म कर्म सिद्धांत को समझो
मन  के बहकावे में आकर किसी भी उलझन में न उलझो
निरासक्त योगी की भांति तुम करो धर्म का उत्थान
मेरा स्मरण करो मन में और करो निजशक्ति का आव्हान
सब धर्मों को छोड़ धनञ्जय मेरे एक शंरण में आओ
धर्म युद्ध सम्पन्न करो और धर्मध्वज तुम लहराओ
तब गांडीव की डंकार से कौरव सेना थर्राई थी
प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी

महा संग्राम हुआ दोनों में चारों ओर कोलाहल था
कुरुक्षेत्र की छाती में देखो हो रहा खून का दलदल था
जहाँ धर्म ध्वज रक्षक श्री कृष्ण के साथ धनञ्जय हों
वहां स्वयं भाग्य की देवी और श्री विजय का उत्सव हो
लड्खाडाकर गिरा अधर्म और कौरव का फिर अंत हुआ
धर्म स्थापना हेतु सृष्टि का रचा पूर्ण यह खेल हुआ
स्वतंत्र धर्म अब हुआ पुनः और मानवता मुस्काई थी
प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी

सब शास्त्रों का सार और गीतोपनिषद है ये गीता
जीवन के लक्ष्य प्राप्ति को शास्त्र है ये परम पुनीता
तन मन धन को करो समर्पित कृष्ण के निर्देश को मानो
केन्द्रित केशव को करके सारे कार्य को सिद्ध तुम जानो
श्यामानंद की यही प्रार्थना ध्यान सदा चरणों में हो
कृष्ण गुरु की सेवा का उद्देश्य सदा स्मरणों में हो
दिव्य ज्ञान हम तक लाने को योजना कृष्ण की बनाई थी
प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी


-श्यामानंद दास


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