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दिल की नादानी

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  सबकुछ तो है समक्ष मेरे, दिल में फिर वीरानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है पतझड़ के इस मौसम में झट, बसंत की आस दिलाता है बिखर रहे भावनावों से फिर, खुद को ठेस लगाता है अंजाम विदित होने पर भी, करता ये मनमानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है   ठहरे पानी में इसने, पैदा की एक हलचल सी शांत सितारे बैठे थे, मचा दी इसमें झलमल सी चंचल से इस मन ने इसने, उठाई लहरें अनजानी क्यों है सच झूठ का ज्ञान इसे है, करता दिल नादानी क्यों है - श्यामानंद दास

हे प्रियतम तुम आओ ना ...

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  उर के मेरे उपवन में हरियाली सदैव रहती थी मन रूपी मेरी गौरैया हर डाल फुदक ये कहती थी मेरे प्राणप्रिये हे प्रियतम निशदिन तुम आओ ना आकर तुम इस उपवन में प्रेम सुगंध महकाओ ना जब तुम आते इस उपवन में मानो बसंत खिल जाती थी तुम्हारे स्वागत में कुहुकिनी मंगल गीत सुनाती थी देख तुम्हारा रूप मनोहर भौरें गुंजन करते थे कामदेव लज्जा के मारे नहीं आस पास भटकते थे मृगलोचन से जब तुम मोहन कोई कुतूहल कर देते आह ! मेरे अंतर्मन में एक दिव्य आनंद ही भर देते तुम चलते तो लगता मानों बज उठते हैं दिव्य सितार कुछ भी कहते मुखमंडल से देता इक आनंद अपार पर अब तो इस उपवन में मानों है पतझर की मार नहीं उल्लासित कोई गौरैया ना ही ऋतु की कोई बयार गंध सुगंध नहीं है मानों ना प्रेमी की प्रेम पयार ना भौरों का कोई गुंजन ना कोयल की कूक पुकार मन के इस मरुस्थल में मानों पड़ा है प्रेम अकाल उलझी सघन भावनाएं हैं जो लेती आकार विशाल व्याकुल हो उठा ह्रदय अब सहा नहीं जाता ये अकाल हे वनमाली दृष्टिपात कर ले आओ सुन्दर जयमाल मेरे स्मृतिपटल पर अब भी धुंधली सी कुछ स्मृति शेष है तुम्हे छोड़कर जाऊं कहाँ मै बाकी सब तो क्लेश क्लेश है मृगलोचन से कर कु

हे प्रियतम तुम मत जाओ....

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तुम चले गए तो, सूना होगा वृन्दावन यमुना सूनी हो जाएगी नन्द भवन होगा सूना सूनी ब्रज कहलाएगी सूनी ये माखन बिन मटकी सूने होंगे मार्ग सभी सूने होगे ग्वाल बाल जो लूटा करते छाछ कभी सूनी होगी नैनों की चितवन और सूना श्रृंगार आधार होली भी सूनी होगी सूने होंगे सारे त्यौहार तुम चले गए तो कान्हा, उषा बेला सुबह सुबह क्यों मंगल गान सुनाएगी बिलोकिं निरंतर कमल नयन को मैया किसे जगाएगी   क्या होगा गोशाला में रहते गोविन्द बिना गइयों का हाल बछड़ों के खुर से किलकारित किसका करेंगी लाड दुलार अपनी मटकी भर माखन हम क्यों फिर ले आएँगी तुम्हारी वंशी को सुनने को क्यों कोई गोपी इताराएगी ? अपनी सौतन मान किसे हम तुमपर रोष दिखाएंगी ? तुम चले गए तो कान्हा, ये बौराई पुरवाई फ़िर तुम्हारा संदेशा ना लाकर देगी फिर तो शरद पूनम भी हमको अमावास सदृश दिखाई देगी   हमारा ये हिय पिय बिन फिर एक पतझर ऋतू बन जायगी विरहिन के इस पतझर उर में फिर बसंत न आएगी I केसरी वन डालों पर बैठी कोई कोयल न गाएगी I उड़ते भौरों का गायन सुन न कोई सुमन मुस्काएगी गो

सोशल मिडिया की झांकी

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आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी सोशल मिडिया की घर बैठे हम दर्शन करते सब लोगों के दुनिया की क्या खाया और पहना हमने सबको तो ही बतलाते छोड़ ह्रदय की बातें हम तो चेहरे को ही दिखलाते संस्कार हमारे हमें छोडकर लोगों तक हैं पहुँच रहे इन्स्टाग्राम फेसबुक के बदले खुद को हैं हम बेच रहे बात करें भारत भविष्य की और लोगों के दुनिया की आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी सोशल मिडिया की इससे ही दिन होता है और इससे ही होती है रात बन्दर जैसे फोटो खिचवाया तब शायद बनती है बात लाईक कमेन्ट शेयर देखने को हम कितने रहते बेचैन टिकटोक पर फोलोवर्स नहीं तो क्यूँ आये एक पल भी चैन पब जी से बर्बाद हो रही चर्चा बच्चों के दुनिया की आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी सोशल मिडिया की माँ के हाथ का खाना अब तो स्विगी ज़ोमटो में बदल गया समूह में शौपिंग भी अब एमेजोंन फ्लिप्कार्ट में ढल गया एक ही छत के नीचे देखो तो फेसबुक की दीवार खडी अंगूठा छाप दुनिया थी पहले फिर अंगूठे पर आ पड़ी संस्कार छोड़कर होती है बात ट्विट्टर के दुनिया की आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी सोशल मिडिया की मेरी मानो दूर ह

भगवद गीता

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धर्म विचरता एक शिविर में अरु इक था अधर्म तले माधव हैं उस शिविर के रक्षक जिसके अंक में धर्म पले अत्याचार अहम की बू थी सम्पूर्ण धरा पर फ़ैल रही लगा प्रत्यक्ष निकलने जो अधर्म के मन की मैल रही सात चली ग्यारह से लड़ने एक विश्वास कृष्ण का लेकर पांडव थे रक्षित माधव से संरक्षण धर्मराज का लेकर   डरा हुआ सा दिन था और रजनी मानों थर्राई थी प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी देख स्वजन को विचलित अर्जुन केशव से ऐसे बोले द्रोंड पितामह अपनों को मारू कैसे मन मेरा डोले जिनकी शिक्षा पाकर मैंने तलवार धनुष चलाना सीखा जिनकी गोदी में मैंने धर्म अधर्म परखना सीखा आज उन्ही के सामने आकर कैसे शस्त्र उठाऊ मै जिन हाथों से खाना सीखा उनका लहू बहाऊ मैं पार्थ के मन ने मोह भय और कायरता झलकाई थी  प्राणिमात्र कल्याण हेतु ये भगवद गीता आई थी अर्जुन की ये देख स्थिति को केशव ने फटकार लगाई सुन कर अर्जुन के तर्कों को आशा की एक राह दिखाई आत्मा अजर अमर है तुम इसका हनन असंभव जानो धर्म की बात पर मनन करो और मै जो कहता वो तुम मानो छोड़ मोह हे परन्तप धर्म हेतु तुम युद्ध करो अपना

संतोष

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अंदर दुख की ज्वाला भड़की मन में यूँ पर्वत सा रोष बहुत व्यघ्र है मन मेरा जाने हो कैसे संतोष कालचक्र बढ़ता ये निशदिन जैसे मुझे डराता हो तोड़ मनोबल मेरा मुझको मानों मुझे हराता हो दिन तो उथल पुथल में जाता रजनी में ना रहता होश बहुत व्यघ्र है मन मेरा जाने हो कैसे संतोष कोई राग , राग ना लगता लगती है केवल इक चाल सुख भी कोई सुख न लगता लगता जैसे सुंदर जाल सारे जग में ढूंढ लिया मिला है केवल खाली कोष बहुत व्यघ्र है मन मेरा जाने हो कैसे संतोष कौन, कहाँ, कैसे हूं मैं ये बातें मुझको डसती हैं किस कारणवश मिला ये जीवन आँखे सोंच सिसकती हैं जो भी करता मैं जीवन में उसका क्यों मुझको अफसोस बहुत व्यघ्र है मन मेरा जाने हो कैसे संतोष काश ! कोई ऐसा भी हो जिसको हृदय दिखाऊं मैं रोती आंखों को लेकर उर की पीड़ा बतलाऊँ मैं कोई साथी नहीं यहां पर सबको दिखते केवल दोष बहुत व्यघ्र है मन मेरा जाने हो कैसे संतोष

कहाँ हूँ मै खो गया ...

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कहाँ हूँ मै खो गया  कैसे भ्रमित मै हो गया  पहचान अपनी ढूंढने  एक दिन आया था यहाँ  हृदय में ये आस लेकर  खुद को मनाया था जहाँ  भूल को उद्देश्य को  क्या मै करने लग गया  कहाँ हूँ मै खो गया  ढूंढता पहचान अपनी  फिरता हूँ यहाँ वहाँ न जाने किस ओर जाना  न जाने मंजिल है कहाँ कौन हूँ मैं, क्या हूँ मै  कोई बता जाये जरा  कहाँ हूँ मै खो गया  हताश होकर आ बैठा  इस नील नभ के तले  जिसके अंक में रहकर  सारा जग ये पले निहार ऊपर नभ को  बोलता में बेहिसाब  हा ! मेरी वेदनाओं का  कोई तो दे जवाब  इस आधुनिक संसार में  क्या से क्या ये हो रहा  कहाँ हूँ मै खो गया  इस भाग दौड़ के जीवन में  कोई न सुनता गीत मेरा  अब हुई अनुभूति मुझको  कृष्ण हैं सच्चे मीत मेरे  हे कृष्ण आप बताओ  कैसे ये सब हो रहा  कहाँ हूँ मै खो गया 

कृष्ण की सुन्दरता

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रूप निहारूं क्या गिरिधारी देख सकल सुन्दर घनश्याम ये सौंदर्य बिलोकी सखी रिझत जाएँ करोड़ों काम स्वर्ण मुकुट सोहत अति सुन्दर रम्य कपाल तिलक छवि धाम सुन्दर कुंडल यों श्रवनन पर सुन्दर कान्ति से मोहित काम रूप निहारूं क्या गिरिधारी देखो सभी सुन्दर घनश्याम सुन्दर हंसी नासिका सुन्दर सुन्दर वंशी अधर उपाम सुन्दर वचन चरित अति सुन्दर सुन्दर वस्त्र मनोहर नाम रूप निहारूं क्या गिरिधारी देखो सभी सुन्दर घनश्याम सुन्दर कर पग हैं अति सुन्दर सुन्दर नृत्य लगे अभिराम सुन्दर छल सुन्दर है छल दल सुन्दर जिनके कृत्य तमाम रूप निहारूं क्या गिरिधारी देखो सभी सुन्दर घनश्याम सुंदर गान मान अति सुन्दर सुन्दर लीला हे लीलाधाम श्यामानंद अवाच्य ये शोभा सिन्धु समक्ष है बूँद समान रूप निहारूं क्या गिरिधारी देखो सभी सुन्दर घनश्याम